बीकानेर abhayindia.com कांग्रेस शासन में निकाय चुनाव में सीधे महापौर और सभापति चुने जाने की आस लगाए बैठे नगर निकायों के उत्साहित राजनीतिक पदाधिकारियों को निराशा हाथ लगी है। पार्षदों की रजामंदी पर महापौर चुने जाने के सरकारी फरमान ने ऐसे लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है, जो पद की चाह में अब तक लोगों की सेवा कर चुनावी मैदान में किस्मत आजमाने को तैयार बैठे थे।
आदेश को लेकर राजनीतिक गलियारों में अजीब सा सन्नाटा दिखाई दे रहा है, एक पक्ष जो राजनीतिक दलों के कद्दावर नेताओं की खुशामदगी कर भविष्य बनाने में सक्रिय था, उनके चेहरे तो खिले दिखाई दिए, जबकि हकीकत में महापौर की योग्यता रखने वाले नेताओं को मायूसी हाथ लगी है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों में एक बार फिर पार्षद बनने की होड़ लग गई है। वहीं निर्दलीय पार्टी के बूते भविष्य बनाने के लिए मैदान में ताल ठोंक रहे नेताओं के चेहरे पर उदासी का सन्नाटा छा गया है।
दीपावली से पहले खुल जाएगी कई नेताओं की किस्मत, राजनीतिक नियुक्तियां
राज्य सरकार ने जैसे ही तय किया कि महापौर, सभापति व पालिकाध्यक्ष को पार्षद ही चुनेंगे। इसके बाद भाजपा व कांग्रेस ने अपनी चुनावी रणनीति में समीकरण जोड़े। वैसे इस फैसले से भाजपा तो राजी है और गहलोत सरकार को घेरना भी शुरू कर दिया वहीं कांग्रेस नेताओं ने अपने बचाव में कहा कि सरकार ने जनता की इच्छा को सर्वोपरि मानते हुए फैसला किया है। बीकानेर नगर निगम में भी महापौर बनने के लिए भाजपा व कांग्रेस में कई वरिष्ठ नेताओं ने सपने संजोए रखा है, वे सरकार के सीधे जनता के जरिए महापौर के चुनाव कराने की प्रकिया से राजी भी थे, लेकिन अब जब फैसला बदल दिया तो उनकी धरती खिसक गई।
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असल में वे इस तैयारी में थे कि टिकट मिलने के बाद चुनाव ही लडऩा था, अब तो पहले पार्षद का टिकट लाना है, उसके लिए सुरक्षित वार्ड और उसके बाद पार्षदों व पार्टी में अपने नाम को मजबूती से शीर्ष पर लाना।