






बीकानेरabhayindia.com नए वर्ष पर बाजारों में कई तरह के कैलेण्डर उपलब्ध है, लेकिन आज भी लोगों में सरकारी कैलेण्डर के प्रति काफी रुझान है। इसके बावजूद बीकानेर में यह कैलेण्डर आमजन की पहुंच से दूर हो गए हैं।
इसकी मुख्य वजह है कि बीकानेर में स्थित रियासकालीन सरकारी प्रेस(राजकीय मुद्रणालय) बीते ढाई साल से बंद पड़ा है। इसके चलते अब यहां पर सरकारी कैलेण्डर नहीं आते, जो कि जयपुर के राजकीय प्रेस में छपते हैं, तैयार होते हैं। उन कैलेण्डरों की मांग अभी भी उतनी ही है, जितनी पहले हुआ करती थी। आज भी बड़ी संख्या में लोग सरकारी प्रेस के कार्यालय में कैलेण्डर के लिए चक्कर काटते हैं।
वर्ष 2020 का आज अंतिम दिन था, और लोगों को नए साल के कैलेण्डर का इंतजार है। बाजारों में तो कई तरह के कैलेण्डर आ गए , लेकिन सरकारी कैलेण्डर नहीं आए।
नहीं होता कोई काम…
सरकारी प्रेस में कार्यरत लेखाधिकारी जितेन्द्र ङ्क्षसह भदोरिया ने अभय इंडिया के साथ बातचीत में बताया कि वर्ष 2018 में ही सरकारी मुद्रणालय में छपाई का काम पूर्णरूप से बंद हो गया था, इसके बाद से ही सरकारी कैलेण्डर यहां नहीं आते। जिन लोगों को लेना होता है, वो जयपुर से ही मंगवाते हैं। वर्तमान में लोग तो मांगने के लिए आ रहे हैं, लेकिन कैलेण्डर यहां नहीं आने से उन्हें निराशा ही हाथ लगती है।
पड़ रहा है भारी…
एक तरफ सरकार ने बीकानेर में स्थिति प्रेस को बंद कर दिया, जिसमें करोड़ों की मशीनें धूल फांक रही है, वहीं दूसरी ओर सरकारी दफ्तरों में सरकारी कैलेण्डरों की अनिवार्यता है। ऐसे में एक-एक दफ्तर से महज कैलेण्डर लाने के लिए कर्मचारियों पर हजारों रुपए का खर्च आ रहा है। जो भी कार्मिक जयपुर या जोधपुर कैलेण्डर लेने के लिए जाता है, तो उसका टीए, डीए का खर्च कैलेण्डरों की दरों से कई गुना ज्यादा हो जाता है।
हजारों की संख्या में आते थे…
लेखाधिकारी के अनुसार ढाई साल पहले तक यहां 30 से 35 हजार कैलेण्डर आते थे, इनकी दरें वाजिब होने के कारण यह तुरंत ही बिक्री हो जाते थे।



