Saturday, July 27, 2024
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बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष : संन्यासी के वेष में भगवान् बुद्ध ने त्रैलोक्य का मङ्गल किया

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जयपुर Abhayindia.com बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महाराज शुद्धोदन के यशस्वी पुत्र गौतम बुद्ध के रूप में ही श्रीभगवान् अवतरित हुए थे। ऐसी प्रसिद्धि विश्रुत है, परंतु पुराणवर्णित भगवान् बुद्धदेवका प्राकट्य गया के समीप कीकट देश में हुआ था। उनके पुण्यात्मा पिता का नाम ‘अजन’ बताया गया है। यह प्रसंग पुराणवर्णित बुद्धावतार का ही है। उनके सम्मुख देवता दैत्यों की शक्ति बढ़ गई थी। टिक नहीं सके, दैत्यों के भय से प्राण लेकर भागे। दैत्यों ने देवधाम स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। वे स्वच्छन्द होकर देवताओं के वैभव का उपभोग करने लगे; किंतु उन्हें प्रायः चिन्ता बनी रहती थी कि पता नहीं, कब देवगण समर्थगवान् बुद्ध होकर पुनः स्वर्ग छीन लें। सुस्थिर साम्राज्य की कामना से दैत्यों ने सुराधिप इन्द्र का पता लगाया और उनसे पूछा- ‘हमारा अखण्ड साम्राज्य स्थिर रहे, इसका उपाय बताइये।’

देवाधिप इन्द्र ने शुद्ध भाव से उत्तर दिया- ‘सुस्थिर शासन के लिये यज्ञ एवं वेदविहित आचरण आवश्यक है।’ दैत्यों ने वैदिक आचरण एवं महायज्ञ का अनुष्ठान प्रारम्भ किया। फलतः उनकी शक्ति उत्तरोत्तर बढ़ने लगी। स्वभाव से ही उद्दण्ड और निरंकुश दैत्यों का उपद्रव बढ़ा। जगत्में आसुरभाव का प्रसार होने लगा।

असहाय और निरुपाय दुःखी देवगण जगत्पति श्रीविष्णु के पास गये। उनसे करुण प्रार्थना की। श्रीभगवान्ने२४२• निर्गुन ब्रह्म सर उन्हें आश्वासन दिया। श्रीभगवान्ने बुद्ध का रूप धारण किया। उनके हाथ में मार्जनी थी और वे मार्ग को बुहारते हुए उस पर चरण रखते थे। इस प्रकार भगवान् बुद्ध दैत्यों के समीप पहुँचे और उन्हें उपदेश दिया- ‘यज्ञ करना पाप है। यज्ञ से जीव हिंसा होती है। यज्ञ की प्रज्वलित अग्रि में ही कितने जीव भस्म हो जाते हैं। देखो, मैं जीव हिंसा से बचने के लिये कितना प्रयत्नशील रहता हूँ। पहले झाडू लगाकर पथ स्वच्छ करता हूँ, तब उस पर पैर रखता हूँ।’ संन्यासी बुद्धदेव के उपदेश से दैत्यगण प्रभावित हुए। उन्होंने यज्ञ एवं वैदिक आचरणका परित्याग कर दिया। परिणामतः कुछ ही दिनों में उनकी शक्ति क्षीण हो गई। फिर क्या था, देवताओं ने उन दुर्बल एवं प्रतिरोधहीन दैत्यों पर आक्रमण कर दिया। असमर्थ दैत्य पराजित हुए और प्राणरक्षार्थ यत्र-तत्र भाग खड़े हुए। देवताओं का स्वर्ग पर पुनः अधिकार हो गया। इस प्रकार संन्यासी के वेष में भगवान् बुद्ध ने त्रैलोक्यका मङ्गल किया। -डॉ. मनीषा शर्मा, लिपि विशेषज्ञ (प्राचीन नागरी संपादन: शिक्षा कौस्तुभ शोध पत्रिका, प्राचार्य, राजस्‍थान शिक्षक प्रशिक्षण विद्यापीठ जयपुर

शिवावतार भगवान श्रीमद् आदि शंकराचार्य (जन्म जयंती पर विशेष )

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