Sunday, April 20, 2025
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विश्व दुग्ध दिवस पर ऊँटनी के दूध की औषधीय महत्ता पर चर्चा, ऑनलाइन विचार गोष्ठी आयोजित

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बीकानेर abhayindia.com भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र द्वारा सोमवार को विश्व दुग्ध दिवस (वल्र्ड मिल्क डे) के उपलक्ष्य पर उष्ट्र दूध के उपभोक्ताओं के साथ (ऑनलाइन) विचार गोष्ठी आयोजित की गई। केन्द्र द्वारा ऊँटनी के दूध के औषधीय महत्व एवं इसके उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य लाभ को ध्यान में रखते हुए राजस्थान में लक्ष्मणगढ़, जयपुर, पंजाब से कपूरथला, चंडीगढ़, जम्मू, दिल्ली, पटना, इंदौर, बेंगलुरु, पुणे व चेन्नई से जुड़े आॅटिज्म रोग से ग्रसित बच्चों के परिजनों से सार्थक चर्चा की गई।

वहीं मधुमेह के रोगियों में विशेषकर बीकानेर, गंगानगर, सूरत, मुंबई से जुड़े मरीजों से भी चर्चा की गई। इसके साथ ही ऊँटनी के दूध व्यवसाय से जुड़े कई संगठनों/उद्यमियों/ऊँट पालक भाइयों यथा- आदविक फूड्स, जैसलमेर कैमल मिल्क डेरी, जयपुर से सारिका रायका दूध भंडार, लोकहित पशु पालन संस्थान सादड़ी, भरजा, सिरोही के साथ गहन चर्चा की गई।

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वार्ता के दौरान ऊँटनी के दूध को प्रयुक्त कर रहे ऑटिज्म ग्रसित बच्चों के परिजनों ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि इन विशेष बच्चों में कुछ में अति सक्रियता का होना, आवाज चली जाना, मुंह से लार टपकते रहना, बच्चे की अनियंत्रित गति, वजन का बढ़ना इत्यादि में सुधार होने लगता है। फरीदकोट के विशिष्ट बच्चों के लिए स्पेशल सेंटर की गतिविधियों के बारे में वार्ता की। वहीं मधुमेह टाइप-1 रोगियों ने ऊँटनी के दूध से स्वास्थ्य लाभ प्राप्ति के बारे में जिक्र कर बताया कि ऊँटनी का दूध लेने पर मरीज की दिनचर्या नियमित होने के अलावा मधुमेह से जुड़े अन्य लक्षणों जैसे भूख/प्यास अधिक लगना, थकावट महसूस होना, नेत्र दृष्टि में भी सुधार होने लगता है।

केन्द्र निदेशक डाॅ. आर. के. सावल ने कहा कि विश्व प्रसिद्द यह केंद्र ऊँटनी के दूध के उत्पादन एवं उसमें विद्यमान औषधीय गुणों पर गत डेढ़ दशक से सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है ताकि आमजन के समक्ष इस दूध के महत्व को प्रतिपादित किया जा सके तथा इसका भरपूर लाभ मिल सके। केन्द्र ने देश में ऊँटनी के दूध को बढ़ावा देने हेतु प्रायोगिक उष्ट्र डेयरी व मिल्क पार्लर की स्थापना की साथ ही इस दूध से विभिन्न स्वादिष्ट उत्पाद भी विकसित किए।

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ऊँटनी के दूध में विद्यमान कई प्रकार के रक्षात्मक प्रोटीन्स जैसे लाइसोजाईम, लैक्टोफेरिन, लैक्टोपरऑक्सीडेज एवं पैप्टीडोग्लाइकान पाए जाते हैं। दूध में लोहा, जस्ता, तांबा की अधिक मात्रा होती है। इसके दूध में विद्यमान विटामिन ‘सी‘ की मात्रा जहां इसे लम्बे समय तक रखने में सहायक है वहीं विटामिन्स की उपस्थिति दूध के पोषक मान को बढ़ाते हैं। ऊँट में अंतर्निहित रोग प्रतिकारक (इम्यूनिटी) क्षमता का भी विभिन्न मानवीय रोगों के निदान हेतु उपयोग के परिणाम सकारात्मक प्राप्त हुए हैं।

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यह दूध मधुमेह प्रबंधन, क्षय रोग, दूध एलर्जी, कोलेस्ट्राॅल घटाने की क्षमता, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर आदि में लाभकारी पाया गया है। उन्होंने कहा कि 2012 से 2019 के बीच ऊँटों की संख्या घटी है। परंतु नर ऊँटों की तुलना में मादा ऊँटों की संख्या में 30 प्रतिशत सुधार हुआ है और यह दूध की उपयोगिता एवं व्यवसाय की प्रबल संभावनाओं को दर्शाता है। अतः उष्ट्र दुग्ध के प्रति समाज में अनभिज्ञता व व्याप्त रूढ़िवादी परम्पराओं से ऊपर उठकर आधुनिक भारतीय परिवेश में जागरूक व सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकार उष्ट्र पालन को एक डेयरी व्यवसाय के रूप में बढ़ावा देना होगा।

डाॅ.सावल ने कहा कि वर्तमान में कोरोना महामारी से विश्व इस इससे जूझ रहा है तथा प्रमुख तौर पर रोग से बचाव में रोग प्रतिरोधक क्षमता पर अधिक निर्भरता देखी जा रही है तो ऐसे में ऊँटनी के दूध में विद्यमान गुणधर्म इस दूध को एक विषिष्ट पहचान दिला सकते हैं।

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