बीकानेर abhayindia.com कोरोना को लेकर बीकानेर में स्पष्ट रूप से दो प्रकार की प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती हैं। जिन लोगों को तक अब तक कोरोना की आंच पहुंची नहीं हैं, वे इसे बीमारी मानने से ही इनकार कर देते हैं और दूसरे वे लोग हैं जो बीमारी के आ जाने के बावजूद इसके लिए जरूरी कदम उठाने के बजाय इसे खुद ब खुद ठीक होने का इंतजार कर रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि कोरोना की चपेट में आकर गंभीर रूप से बीमार होने वाले लोगों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है और साथ ही मृत्युदर भी बढ़ रही है।
किसी भी महामारी या कहें दुरावस्था के प्रति आमजन की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया के पांच स्टैप होते हैं। ये इस प्रकार हैं…
लोग यह मानने से ही इनकार कर देते हैं कि दुरावस्था है। कोरोना संक्रमण काल में ऐसे लोग आपको हर गली मोहल्ले में मिल जाएंगे, जो विशेषज्ञ के स्तर की टिप्पणी करते हुए कोरोना संक्रमण को सिरे से नकार देंगे। इस रोग के प्रति आगाह करने वाले सैकड़ों उद्धरण मिल जाएंगे, लेकिन लोग उनकी बातों पर अधिक ध्यान देंगे जो इसे नकारने के लिए कभी एक तो कभी दूसरा बहाना लेकर आए हैं। इसी दौर में कांस्पिरेसी थ्योरी देने वाले पैदा होते हैं। वे कभी इसमें अमीरों की साजिश बताएंगे तो कभी नेताओं की, कभी भ्रष्ट लोगों की तो कभी अज्ञात शक्तियों की, कुल मिलाकर जो आपदा सम्मुख खड़ी है, उसे नकारने का हर संभव प्रयास रहेगा।
दूसरा चरण होता है गुस्से के रूप में। महामारी से बचने के लिए सरकार प्रभावी कदम उठा रही है और स्वास्थ्य विभाग अपने स्तर पर इन नए रोग से निपटने के लिए ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल बना रहा है। जब तक इस वायरसजनित रोग का टीका नहीं बन जाता, ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल यानी इलाज की रूपरेखा ही ऐसा जरिया है जो वास्तव में संक्रमण के बाद बचा सकता है। इसमें एंटीवायरल और इम्युनिटी बूस्टर दवाओं से लेकर प्लाजमा थैरेपी तक सभी शामिल हैं। एक के बाद दूसरे ट्रीटमेंट के प्रभाव स्पष्ट नहीं दिखने पर लोगों में आक्रोश बढ़ता है। आपको ऐसे रोगी भी आसानी से दिख जाएंगे।
अगर घर में रहेंगे तो बच जाएंगे, अगर नाक पर कपड़ा रखेंगे तो बच जाएंगे, अगर हल्दी वाला दूध पीएंगे तो बच जाएंगे… और कुछ मामलों में भभूतियां खाने और झाड़ा लगवाने तक के हथकंडे शामिल होते हैं। यह एक तरह का मोलभाव है आपदा के साथ, कि हम ऐसा कर लें तो हमें छोड़ देना। चूंकि आपदा के लिए यह सब कोई मायने नहीं रखता, वह अपनी गति और चाल के साथ टूट ही पड़ी है तो यह मोलभाव भी अधिकांशत: बेकार ही जाता है। अगर एक के लिए काम भी कर जाए तो बाकी उसकी देखा देखी खुद को धोखे में रखते हुए काल के मुख की ओर दौड़ पड़ते हैं।
जब किसी भी तरीके से आपदा रुकती हुई नहीं दिखाई देती, पहले शहर में, फिर मोहल्ले में, फिर गली में और आखिर में रिश्तेदारों के चपेट में आने और रोग के कहर के लक्षण स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं। इस दौर में बजाय सटीक इलाज के प्रभावित लोग अवसाद का रास्ता पकड़ लेते हैं। रोग के प्रति यह प्रतिक्रिया न केवल रोगी को नुकसान पहुंचाती है बल्कि इलाज में भी बाधा पैदा करती है।
यह आखिरी स्टेज होती है, इस समय लोग स्वीकार करने लगते हैं कि आपदा से जो नुकसान होना है, वह होगा ही, इससे किसी भी प्रकार बचा नहीं जा सकता।
उपरोक्त पांचों मनोभाव इस आपदा के समय नुकसानप्रद ही साबित होते हैं। रोग के आप तक पहुंचने से पहले तक आप रोग को नकार सकते हैं, लेकिन एक बार आप तक रोग पहुंच जाए तो आपके लिए रोग अथवा व्यवस्था के प्रति क्रोध भी हो तो उसका कोई लाभ नहीं, इस रोग से आप किसी भी प्रकार मोलभाव नहीं कर सकते, जिस प्रकार युद्धभूमि पर गोलियां चल रही हों, तब आप अपनी तलवार देकर भी अपना सिर नहीं बचा सकते, उसी तरह इस आपदा में कोई मोलभाव काम नहीं करेगा। रोग के घर तक पहुंचने से पहले आपने कोई कार्रवाई नहीं की है, तो अब अवसाद में आने का अर्थ है कि खुद को रोग के भीषणतम परिणाम तक पहुंचने के लिए रास्ता देना और अंत में हम मित्रों और अनुकूल स्थितियों को स्वीकार कर सकते हैं, लेकिन आपदा को नहीं, इससे लड़ना ही होगा।
चाहे कोरोना आपदा आप तक नहीं पहुंची हो, आपको इसके प्रति सावधान रहना चाहिए, नया रोग है और नई चुनौतियां हैं, इस कारण रोग से लड़ने में अधिक मुश्किलें आ रही हैं। सरकार अपना काम कर रही है, चिकित्सा तंत्र अपना काम कर रहा है। जहां डैमेज रोका जा सकता है, वहां डैमेज रोका जा रहा है, जहां नुकसान के बाद भरपाई की जा सकती है, वह की जा रही है, व्यवस्थाओं में बदलाव और सुधार किए जा रहे हैं। खुद पर विश्वास रखें, सावधान रहें, सावधानी रखें, व्यवस्था पर विश्वास करें, अस्पतालों में अपनी जान दांव पर रखकर चिकित्साकर्मी रोगियों की जान बचाने का प्रयास कर रहे हैं।
सनातन सभ्यता ने हजारों सालों में ऐसे सैकड़ों बुरे वक्त देखे होंगे, हम सभी को जीतते हुए आज यहां तक आ गए हैं तो यह समय भी बीत जाएगा और हम फिर से पुराने सहज और समृद्ध सामाजिक दौर में लौट पाएंगे, तब तक के लिए हर संभव खतरे के प्रति सावधान रहें और सजगता के साथ इस रोग को हराएं।