Thursday, March 28, 2024
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राजस्थान : चुनाव आते ही महिलाओं को टिकट देना भूल जाती हैं पार्टियां

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सुरेश बोड़ा/जयपुर/बीकानेर (अभय इंडिया न्यूज) हर बार चुनावों के दौरान राजनीतिक दल महिलाओं को टिकट देने के दावे करती हैं, लेकिन ऐनवक्त पर उन्हें दरकिनार कर दिया जाता है। राजस्थान में अब तक (1951 से 2017 तक) हुए 14 विधानसभा चुनाव और उपचुनावों में महज कुल 169 महिलाएं ही विधानसभा पहुंच पाई हैं। इनमें से 161 महिलाएं विधानसभा के आम चुनावों में तथा बाकी आठ उपचुनावों में जीतीं। इनमें भी उन महिला नेत्रियों की संख्या कम ही मिलेगी, जिनका राजनीतिक सफर विधायक से आगे यानी मंत्री, सीएम या किसी अन्य ओहदे तक पहुंचा। बता दें कि इन चुनावों में महिला आरक्षण की व्यवस्था नहीं है। आरक्षण होने पर ही महिलाओं को तवज्जो देने के लिए पार्टियां मजबूर हो सकती है।

गौरतलब है कि केन्द्र सरकार ने वर्ष 2009 में संविधान के अनुच्छेद 243 में संशोधन करते हुए पंचायतराज में महिलाओं का आरक्षण 33 से बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया था। इसके बाद से ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों, जिला परिषद में महिलाओं का दबदबा दिखने लगा है। हर सदन में आधी संख्या में महिलाएं होती है और अपनी बात मुखर होकर रखती है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में पंचायतराज में महिला जनप्रतिनिधियों की संख्या लगभग 15 लाख है। यह संख्या आरक्षण की वजह से ही संभव हो सकी है। ऐसी ही ताकत महिलाओं को लोकसभाविधानसभा में देने की मुहिम शुरू होनी चाहिए। 

प्रदेश की प्रथम महिलाएं

वसुंधरा राजे : पहली सीएम। वर्ष 2003 में पहली बार प्रदेश की मुख्यमंत्री चुनी गई।

सुमित्रा सिंह : पहली विधानसभाध्यक्ष। नौ बार विधायक बनीं। 2003 में विधानसभाध्यक्ष चुनी गईं।

कमला बेनीवाल : पहली मंत्री। 27 की उम्र में ही प्रदेश की पहली महिला मंत्री बनीं।

यशोदा देवी : नवंबर 53 के उपचुनाव में प्रदेश को पहली महिला विधायक मिली।

 ऊषा : पहली महिला विधायक बनीं, जिन्हें 72 के चुनाव में कांग्रेस ने वैर से टिकट दिया।

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