Saturday, April 20, 2024
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…और लोगों ने दे दिया एक कुतिया को ‘महारानी’ का दर्जा

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झांसी (अभय इंडिया डेस्क)। प्रकृति को धर्म के साथ लेकर चलने वाले हिंदुओं में पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों को खास का धार्मिक महत्व दिया गया है। पेड़ों में नीम व पीपल को साक्षात् भगवान का रूप मानते हैं, वहीं गाय को माता का दर्जा देकर उसका स्थान बहुत बड़ा दिया है। सनातन धर्म मे यह काम तो वैदिक काल से ही हो रहे हैं। अन्य पशुओं को भी किसी न किसी देवता का वाहन बताकर उसके संरक्षण व पारिस्थितिकी को संतुलित करने का प्रयास धर्म के माध्यम से किया गया है। श्वान को भैंरुनाथजी की सवारी माना जाता है, लेकिन उत्तरप्रदेश के झांसी जनपद में रेवन व ककवारा के ग्रामीण कुतिया के मंदिर में न सिर्फ पूजा करते हैं, वरन ये ग्रामीण अपनी आस्था में इसे ‘कुतिया महारानी’ कहते हैं।

दोनों गांवों के बीच सड़क के किनारे एक कुतिया का मंदिर है। इस मंदिर में काली कुतिया की बाकायदा मूर्ति स्थापित कि गई है। प्रतिमा के बाहर लोहे की छड़ें लगाई गई हैं जिससे कोई मूर्ति को नुकसान ना पहुंचा सके। रेवन व ककवारा के ग्रामीणों की इसमें बेहद आस्था हैं और कुतिया महारानी की पूजा करते हैं। दिलचस्प है कि यहां के लोगों में कुतिया महारानी के प्रति अपार आस्था है और जो भी इस कुुुतिया महारानी के मंदिर के सामने से गुजरता है वह अपना सिर झुकाकर आशीर्वाद जरूर मांगता है।

कुतिया का यह मंदिर बनने के पीछे इसका अपना इतिहास है। दरअसल, इस कुतिया की मौत हो गई थी जिसने ग्रामीणों को बहुत आहत किया। स्थानीय लोग बताते हैं कि जब कुतिया की मौत हुई उस समय दोनों गांव रेवन-ककवारा में सामूहिक भोज की परंपरा थी। कुतिया भी इन दोनों गांवों में आती जाती रहती थी। जब भी किसी गांव में कोई कार्यक्रम होता वह खाना खाने पहुंच जाती थी। एक बार कि बात है कुतिया को रेवन गांव से रमतूला के बजने की आवाज सुनाई दी। कुतिया को बहुत भूख लगी थी वह खाने के लिए दौड़ी-दौड़ी रेवन गांव में पहुंच गई। लेकिन वहां पहुंचने में देर हो गई जब वह रेवन गांव में पहुंची तब तक सभी लोगों ने खाना खा लिया था जिसके कारण उसे खाना नहीं मिल पाया। थोड़ी ही देर बाद कुतिया को ककवारा गांव से रमतूला की आवाज सुनाई दी वह दौड़ी दौड़ी ककवारा लेकिन उसे वहां भी खाना नहीं मिला। दोनों गांवों के बीच दौड़ते-दौड़ते वह बहुत थक गई और भूख की वजह से उसने दम तोड़ दिया। उसके बाद ग्रामीणों ने पश्चाताप वश इस मंदिर का निर्माण करवाया।

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